
दिल्ली की साकेत कोर्ट में गुरुवार को कथित तौर पर 27 हिन्दू-जैन मंदिरों को तोड़कर कुतुब मीनार परिसर में बनी मस्जिद को हटाकर मंदिर बनवाने के लिए लगाई गयी याचिका पर सुनवाई होगी।
याचिका में मस्जिद पर दावा ठोकते हुए मंदिरों के दोबारा निर्माण कराने और विधिवत पूजा करने का अधिकार मांगा गया है। याचिका में कुतुब मीनार परिसर में बनी कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर दावा ठोका गया है।
याचिका में कहा गया है कि इस मस्जिद को 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था और इसको साबित करने के लिए इतिहास में पर्याप्त सबूत हैं।
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लिहाजा इस मस्जिद में तोड़े गए मंदिरों को दोबारा स्थापित करने और वहां पर विधि-विधान से 27 देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने का अधिकार दिया जाए।
साकेत कोर्ट में यह याचिका पहले जैन तीर्थंकर ऋषभ देव और भगवान विष्णु के नाम से दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता ने इतिहास में दर्ज जानकारी के आधार पर बताया है कि आज जिसे हम महरौली के नाम से जानते हैं।
वह दरअसल मिहरावली थी जिसको चौथी सदी के शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था। याचिकाकर्ता का कहना है कि मुहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कदम रखते ही सबसे पहले इन 27 मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया।
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जल्दबाजी में मंदिरों को तोड़कर बची सामग्री से मस्जिद खड़ी कर दी गई। फिर उस मस्जिद को कुव्वत-उल-इस्लाम नाम दिया गया। जिसका मतलब है इस्लाम की ताकत।
इसके निर्माण का मकसद इबादत से ज़्यादा स्थानीय हिंदू और जैन लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और उनके सामने इस्लाम की ताकत दिखाना था।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को इतिहास पर पर्दा हटाते हुए बताया है कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई गई।
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लेकिन इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज नहीं पढ़ी।याचिकाकर्ता ने कहा कि इसकी वजह यह थी कि ये मस्जिद मंदिरों की सामग्री से बनी है।
इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थीं। कुतुब मीनार परिसर में बनी इस मस्जिद में उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है।
याचिका में सिलसिलेवार ढंग से बताया गया है कि इतिहास के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया था।
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जहां फिलहाल कुतुब मीनार परिसर है। इस स्तम्भ को ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था। मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार नाम दिया गया था।
याचिका के मुताबिक इसी परिसर में 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर थे। इनमें जैन तीर्थंकरों के साथ भगवान विष्णु, शिव, गणेश के मंदिर थे।
जिन्हें तोड़कर इस मस्जिद को बनाया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वे का बोर्ड भी यही बताता है कि उसे 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर बनाया गया है।
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याचिका में कहा गया है कि इमारत के बारे में पूरी जानकारी होते हुए भी तब की सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया।
जबकि मुस्लिम समुदाय ने जगह का कभी धार्मिक इस्तेमाल किया ही नहीं। इसके अलावा ये वक्फ की संपत्ति भी नहीं है। इसलिए उनका कोई दावा नहीं बनता।
फिलहाल ये जगह सरकार के कब्जे में है। ऐसे में याचिका में मांग की गई है कि इस मस्जिद को 27 मंदिरों के दोबारा निर्माण के लिए दिया जाए और सरकार कोर्ट के आदेश पर मंदिरों के प्रबंधन के लिए ट्रस्ट का गठन करे।
